केंद्र सरकार जल्द ही संसद में एक ऐसा बिल पेश करने जा रही है जो वक्फ बोर्ड के अधिकारों में कटौती कर सकता है
नई दिल्ली केंद्र सरकार कथित तौर पर जल्द ही संसद में एक ऐसा बिल पेश करने जा रही है जो वक्फ बोर्ड के अधिकारों में कटौती कर सकता है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का दावा किया गया है कि केंद्रीय कैबिनेट की हालिया बैठक में वक्फ अधिनियम में लगभग 40 संशोधनों को मंजूरी […]
नई दिल्ली
केंद्र सरकार कथित तौर पर जल्द ही संसद में एक ऐसा बिल पेश करने जा रही है जो वक्फ बोर्ड के अधिकारों में कटौती कर सकता है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का दावा किया गया है कि केंद्रीय कैबिनेट की हालिया बैठक में वक्फ अधिनियम में लगभग 40 संशोधनों को मंजूरी दी गई है। इस कदम ने देशभर में विवाद खड़ा कर दिया है, और कई मुस्लिम नेताओं ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है। इन तमाम विवादों के बीच आइए जानते हैं कि वक्फ और वक्फ बोर्ड क्या है और किन नियमों के आधारित यह संचालित किया जाता है, जिसे लेकर आए दिनों विवाद खड़ा होता रहता है।
वक्फ और वक्फ बोर्ड क्या है?
वक्फ एक प्रकार की संपत्ति होती है जिसे धार्मिक और चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए ईश्वर के नाम पर समर्पित किया जाता है। 1954 के वक्फ अधिनियम के तहत, वक्फ से प्राप्त आय का उपयोग मस्जिदों, शैक्षणिक संस्थानों, कब्रिस्तानों और आश्रय स्थलों के लिए किया जाता है। एक बार वक्फ घोषित होने के बाद, यह संपत्ति स्थायी रूप से दान के रूप में मानी जाती है और इसे वापस नहीं लिया जा सकता। वक्फ बोर्ड एक कानूनी इकाई होती है जो इन संपत्तियों का प्रबंधन करती है। बोर्ड के राज्य सरकार, मुस्लिम विधायक, सांसद, राज्य बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामी विद्वान और वक्फ के मुतवल्ली (प्रबंधक) होते हैं। इनका मुख्य कार्य वक्फ संपत्तियों की देखभाल करना और यह सुनिश्चित करना है कि इन संपत्तियों का सही उपयोग हो रहा है।
क्यों मचा है बवाल?
वक्फ अधिनियम 1995 के तहत, वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन और प्रशासन मजबूत किया गया। इसमें वक्फ संपत्तियों की पहचान, पंजीकरण और इनके प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं। लेकिन वक्फ अधिनियम के सेक्शन 40 पर सबसे ज्यादा विवाद है। इसके तहत वक्फ बोर्ड को यह अधिकार है कि वह किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है और इसे शिया या सुन्नी वक्फ के अंतर्गत रख सकता है।
वक्फ बोर्ड के इस फैसले के खिलाफ सिर्फ ट्रिब्यूनल में जाया जा सकता है। इसे लेकर फरवरी 2023 में तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में इस प्रावधान को स्पष्ट किया था। इस तरह के नियमों को निरस्त करने के लिए वक्फ निरसन विधेयक, 2022 लाया गया था और इसे अंतिम बार 8 दिसंबर, 2023 को राज्यसभा में पेश किया गया था। हालांकि, यह विधेयक उस विधेयक से संबंधित नहीं हो सकता है जिसे सरकार आगामी संसद सत्र में पेश करने की योजना बना सकती है।
कथित संशोधन को लेकर विरोध
कथित संशोधित को लेकर देशभर में विरोध के स्वर उठ रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि सरकार का यह निर्णय वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को खत्म कर देगा और इससे प्रशासनिक अस्थिरता पैदा होगी। ओवैसी के अनुसार, यह संशोधन वक्फ बोर्ड की स्वतंत्रता पर गंभीर चोट करेगा और सरकार का बढ़ता नियंत्रण वक्फ संपत्तियों की स्वतंत्रता को खत्म कर सकता है।